Sunday, October 24, 2010

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Wednesday, October 6, 2010

खरगोश

                          खरगोश 
कितना प्यारा बरफ सा ,
रुई जैसा कोमल गोल ,
मटोल अनमोल .
लाल लाल कंचे जैसी 
आँखे  जो व्यक्त करती हैं ,
इस मूक प्राणी की 
अनकही हजारों बातें ,
नर्म नाजुक दिल जो भय
 से धड़कता है सुपरसोनिक की गति से .
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                         घास :--
 कितनी अच्छी लगती ,
सारे दुःख चुप सहती,
 मन को ठंडक देती,
आँखों को तृप्ति .
बहुत जरासी साँसों,
से लम्बा जीवन जीती,
कितनी सह्रदय सहन शीला जो 
घाव ह्रदय  पे सहती  ,
पर कभी किसी से कुछ ना कहती 
पर रात्रि में अपनी मौन वेदना
चुपके से व्यक्त करती .
जो भोर के उजाले में ,
ओस के कणों में मिलती 
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 1984 में लिखित 
    

Saturday, October 2, 2010

ये बड़ा सा स्कूल जिसमे नन्हे नन्हे,

ये बड़ा सा स्कूल जिसमे नन्हे नन्हे,
प्यारे प्यारे छोटे छोटे फूल,

कोई फूल पीला है कोई फूल नीला है कोई चमकीला है ,
है लाल सभी सब के सपने ,चह- चहाते ,मचलते ,
गुनगुनाते ,हँसते रोते खिलखिलाते ,इठलाते
जैसे किसी उपवन  में पंछी है गाते,
ची  ची  पी पी टी टी की करतल धुन,
बगिया के माली करो अथक श्रम [शिक्षक ]
हर फूल को सींचो अपने ज्ञान के प्रकाश से ,
जो चमक  उठे संवर   उठे  हर फूल ,
बनाये एक उपवन कल ये बगिया के फूल.
महकाये अपनी खुशबू  से सबका ,
तन मन धन ,हर एक बने सम्पूर्ण  ज्योति का पुंज .



ये 25 वर्ष पूर्व की रचना है .
जब विचारो ने कविता का रूप लेना शुरू किया ..................




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