Sunday, March 25, 2012

सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्

शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्षयामि कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्। येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: शुभो भवेत्॥1॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्। न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥2॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्। अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥3॥
गोपनीयं प्रयत्‍‌नेन स्वयोनिरिव पार्वति। मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्धयेत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥4॥
अथ मन्त्र:
\ ऐं ह्री कीं चामुण्डायै विच्चे॥\ ग्लौं हुं कीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्री कीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा
॥ इतिमन्त्र:॥
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि। नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषर्दिनि॥1॥
नमस्ते शुम्भहन्˜यै च निशुम्भासुरघातिनि॥2॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे। ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥3॥
कींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते। चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥4॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥5॥
धां धीं धूं धूर्जटे: पत्‍‌नी वां वीं वूं वागधीश्वरी। क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥6॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी। भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नम:॥7॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥8॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे। अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्। न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥ अर्थ :- शिवजी बोले- देवी! सुनो। मैं उत्तम कुञ्जिकास्तोत्र का उपदेश करूँगा, जिस मन्त्र के प्रभाव से देवी का जप (पाठ) सफल होता है॥1॥
कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त , ध्यान, न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी (आवश्यक) नहीं है॥2॥
केवल कुञ्जिका के पाठ से दुर्गा-पाठ का फल प्राप्त हो जाता है। (यह कुञ्जिका) अत्यन्त गुप्त और देवों के लिये भी दुर्लभ है॥3॥
हे पार्वती! इसे स्वयोनि की भाँति प्रयत्‍‌नपूर्वक गुप्त रखना चाहिये। यह उत्तम कुञ्जिकास्तोत्र केवल पाठ के द्वारा मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि (आभिचारिक) उद्देश्यों को सिद्ध करता है॥4॥
मन्त्र = \ ऐं ह्रीं क ींचामुण्डायै विच्चे॥\ ग्लौं हुं क ीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क ीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा (मन्त्र में आये बीजों का अर्थ जानना न सम्भव है, न आवश्यक और न वाञ्छनीय। केवल जप पर्याप्त है।)
हे रुद्रस्वरूपिणी! तुम्हें नमस्कार। हे मधु दैत्य को मारने वाली! तुम्हें नमस्कार है। कैटभविनाशिनी को नमस्कार। महिषासुर को मारने वाली देवी! तुम्हें नमस्कार है॥1॥
शुम्भ का हनन करने वाली और निशुम्भ को मारने वाली! तुम्हें नमस्कार है॥2॥
हे महादेवि! मेरे जप को जाग्रत् और सिद्ध करो। ऐंकार के रूप में सृष्टिस्वरूपिणी, ह्रीं के रूप में सृष्टि-पालन करने वाली॥3॥ कीं रूप में कामरूपिणी तथा (निखिल ब्रह्माण्ड) की बीजरूपिणी देवी! तुम्हें नमस्कार है। चामुण्डा के रूप में चण्डविनाशिनी और यैकार के रूप में तुम वर देने वाली हो॥4॥ विच्चे रूप में तुम नित्य ही अभय देती हो। (इस प्रकार ऐं ह्रीं क ीं चामुण्डायै विच्चे) तुम इस मन्त्र का स्वरूप हो॥5॥ धां धीं धूं के रूप में धूर्जटी (शिव) की तुम पत्‍‌नी हो। वां वीं वूं के रूप में तुम वाणी की अधीश्वरी हो। क्रां क्रीं कू्रं के रूप में कालिका देवी, शां शीं शूं के रूप में मेरा कल्याण करो॥6॥ हुं हुं हुंकार स्वरूपिणी, जं जं जं जम्भनाशिनी, भ्रां भ्रीं भ्रूं के रूप में हे कल्याणकारिणी भैरवी भवानी! तुम्हें बार-बार प्रणाम॥7॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं इन सबको तोडो और दीप्त करो करो स्वाहा। पां पीं पूं के रूप में तुम पार्वती पूर्णा हो। खां खीं खूं के रूप में तुम खेचरी (आकाशचारिणी) अथवा खेचरी मुद्रा हो॥8॥ सां सीं सूं स्वरूपिणी सप्तशती देवी के मन्त्र को मेरे लिये सिद्ध करो। यह कुञ्जिकास्तोत्र मन्त्र को जगाने के लिये है। इसे भक्ति हीन पुरुष को नहीं देना चाहिय। हे पार्वती! इसे गुप्त रखो। हे देवी! जो बिना कुञ्जिका के सप्तशती का पाठ करता है उसे उसी प्रकार सिद्धि नहीं मिलती जिस प्रकार वन में रोना निरर्थक होता है।
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स्त्रोत :- श्रीरुद्रयामल के गौरीतन्त्र में यह शिव-पार्वती संवाद के नाम से उद्धृत है। यह स्तोत्र परम कल्याणकारी है। प्रतिदिन प्रात:काल इस स्तोत्र का पाठ करने से सब प्रकार के बाधा-विघन् नष्ट हो जाते हैं।

अथ तन्त्रोक्तं देवीसूक्त म्

देवा ऊचु:
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:। नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्म ताम्॥1॥
रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धा˜यै नमो नम:। ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नम:॥2॥
कल्याण्यै प्रणतां वृद्ध्यै सिद्ध्यै कुर्मो नमो नम:। नैर्ऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नम:॥3॥
दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै। ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नम:॥4॥
अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नम:। नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नम:॥5॥
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥6॥
या देवी सर्वभेतेषु चेतनेत्यभिधीयते। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥7॥
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥8॥
या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥9॥
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥10॥
या देवी सर्वभूतेषुच्छायारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥11॥
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥12॥
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥13॥
या देवी सर्वभूतेषु क्षान्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥14॥
या देवी सर्वभूतेषु जातिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥15॥
या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥16॥
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥17॥
यादेवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥18॥
या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥19॥
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥20॥
या देवी सर्वभूतेषु वृत्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥21॥
या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥22॥
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥23॥
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥24॥
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥25॥
या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥26॥
इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भूतानां चाखिलेषु या। भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदेव्यै नमो नम:॥ 27॥
चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद्व्याप्य स्थिता जगत्। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥28॥
स्तुता सुरै: पूर्वमभीष्टसंश्रयात्तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता।
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:॥29॥
या साम्प्रतं चोद्धतदैत्यतापितै-रस्माभिरीशा च सुरैर्नमस्यते।
या च स्मृता तत्क्षणमेव हन्ति न: सर्वापदो भक्ति विनम्रमूर्तिभि:॥30॥
ॐ श्री गणेशाय नम:
ॐ नमः शिवाय
ॐ ब्रह्म ब्रह्स्पताये नमः 
ॐ श्री हनुमत नमः 
ॐ शं शनिश्चारय नमः 
ॐ धनं लक्ष्मी नमोस्तु  सर्व दारिद्र्य नाशिनी 
धनं देहि श्रियम देहि सर्व कामाक्ष देहि मम .
ॐ भुर्व भुर्वः स्वः तत्सवितुर्वरेनियम
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात .
ॐ  ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाए विच्चे !!
 सर्व मंगल मान्गलिये शिवे सर्वार्थ साधिके .
शरण्ये त्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते .
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
ॐजयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥


या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥



 

Saturday, March 24, 2012

खाना

खाना   ===
दाल=मुंग ,मसूर ,उड़द ,तुअर ,बड़ी आलू ,कढ़ी
मलका मसूर ,राजमा ,चना ,छोले ,गट्टे,
साग =आलू गोभी ,पत्ता गोभी ,आलू मटर ,पालक आलू  ,मेथी केला ,पालक पनीर ,फली  सेम ,मूली की भुर्जी ,बेंगान ,गिलोड़े ,कोफ्ता ,


नाश्ता =
उपमा ,सेवई,नमकीन सेवई ,पोहा
डोसा,चीला ,मीठा चीला ,
पकोड़े ,एग्ग पकोड़ा ,ब्रेड पकोड़ा
 आलू परोंठा,गोभी परोंठा
 आमलेट सेंडविच ,अंडा ब्रेड
चटनी सेंडविच ,नूडल,मैगी,
चाओ मीन,पोहे ,ब्रेडपिज़ा ,पिज़ा
 ब्रेडरोल,दहीवाडा,कचोड़ी,रवाडोसा 
ढोकला ,इडली ,पनीर पकोड़ा