Wednesday, October 6, 2010

खरगोश

                          खरगोश 
कितना प्यारा बरफ सा ,
रुई जैसा कोमल गोल ,
मटोल अनमोल .
लाल लाल कंचे जैसी 
आँखे  जो व्यक्त करती हैं ,
इस मूक प्राणी की 
अनकही हजारों बातें ,
नर्म नाजुक दिल जो भय
 से धड़कता है सुपरसोनिक की गति से .
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                         घास :--
 कितनी अच्छी लगती ,
सारे दुःख चुप सहती,
 मन को ठंडक देती,
आँखों को तृप्ति .
बहुत जरासी साँसों,
से लम्बा जीवन जीती,
कितनी सह्रदय सहन शीला जो 
घाव ह्रदय  पे सहती  ,
पर कभी किसी से कुछ ना कहती 
पर रात्रि में अपनी मौन वेदना
चुपके से व्यक्त करती .
जो भोर के उजाले में ,
ओस के कणों में मिलती 
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 1984 में लिखित 
    

2 comments:

  1. गहन संवेदनाएं , बधाई । खबरों की दुनियाँ में आपका आगमन हुआ , स्वागत - आभार । आते रहिएगा । - आशुतोष मिश्र

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