Saturday, August 15, 2015

***             अज़ादी  का जश्न
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न्याय की बातें करने वाले गिरेबान में झाँक जरा
निर्दोषों की हत्याओं पर पहले माफ़ी मांग जरा

क्या गलती थी उन लोगों की जिनको तूने मार दिया
दो सौ तिरपन निर्दोषों को मौत के घाट उतार दिया

तब मानवता कहाँ गयी थी जब मुम्बई दहलायी थी
न्याय अन्याय की बातें याद नहीं तब आयी थीं

वो न्याय की बात करें जो अन्याय से खेले हैं
तेरा केवल एक मरा है हमने लाखों झेले हैं

कोई अपने घर से निकला था बच्चों को लाने को
कोई प्रसव पीड़ित पत्नी को डाक्टर को दिखाने को

कोई बेटी की शादी की बात चलाने निकला था
कोई घर से बस अपना परिवार चलाने निकला था

कुछ बूढी माँ की दवाई का पर्चा लेकर निकले थे
घूमने फिरने को पापा से खर्चा लेकर निकले थे

बड़ा पाव पानी पूरी खाने को सखियाँ निकलीं थी
चूड़ी बिंदी लाने को कुछ बहन बेटियां निकलीं थी

सच करने को निकले थे कुछ ख़्वाबों की तस्वीरों को
कुछ कर्मों से बदलने निकले थे अपनी तकदीरों को

अब तक उबर नहीं पायी है मुम्बई उन विस्फोटों से
खून अभी तक रिस्ता है उन निर्दोषों की चोटों से

न्याय अन्याय क्या है मत समझाओ उपदेशों से
कितनों ने पहचाना अपने लोगों को अवशेषों से

लाशों का अम्बार लगा यूं लगा गगन भी कफ़न हुआ
आधा शरीर जब नहीं मिला आधा शरीर ही दफ़न हुआ

बैठ के गोद में अब्बा की अब हमको आँख दिखाते हो
अपराधी होकर न्याय का पाठ हमें सिखलाते हो

हम न्याय नियम के पक्के हैं हम खूब कड़ाई करते हैं
फांसी के दो घंटे पहले तक सुनवाई करते हैं

तू बाइस बरस की सुनवाई को नहीं मानता न माने
तू अपनी हरकत को गलती नहीं मानता न माने

तू चैनल पर फोन के द्वारा हमको धमकी देता है
होकर नाली का कीड़ा सूरज से पंगा लेता है

देशद्रोह की राह है ये इस ओर कुंआ वो खाई है
इस गीदड़ की मौत ही इसको शहरों तक ले आई है

अंत समय जब आता है बुद्धि उल्टी हो जाती है
शिशुपाल की सौंवी गाली उसका वध करवाती है

तू बदले की बात न कर याकूब तो केवल झांकी है
निर्दोषों की हत्याओं का बदला लेना बाकी है

दाऊद मेमन और शकील अन्त निकट है तीनों का
पहले नागों को मारें फिर मुंह तोड़ेंगे बीनों को

हों कितनी मजबूत दीवारें हमें तोड़ना आता है
आँख दिखाने वालों हमको आँख फोड़ना आता है