Thursday, April 2, 2020
Monday, January 14, 2019
Saturday, April 21, 2018
सपनों में ही सही
एक बार फिर
अपने घर हो आऊँ।
एक बार फिर
अपने घर हो आऊँ।
वो घर,वो दीवार,
वो ड्राइंग रूम,वो आंगन
वो रास्ते, वो स्कूल,
वो समोसे की दुकान,
वो गोलगप्पे का ढेला।
वो संगी,वो साथी बस
एक बार देख मैं आऊँ।
वो ड्राइंग रूम,वो आंगन
वो रास्ते, वो स्कूल,
वो समोसे की दुकान,
वो गोलगप्पे का ढेला।
वो संगी,वो साथी बस
एक बार देख मैं आऊँ।
जी चाहता है कि
जोर जोर से गाऊँ,
बिन सुर के ही
खूब शोर मचाऊँ।
जोर जोर से गाऊँ,
बिन सुर के ही
खूब शोर मचाऊँ।
बाँध पैरों में घुंघरू
कत्थक की ताल पर
थिरकती जाऊँ।
कत्थक की ताल पर
थिरकती जाऊँ।
फिर एक बार दरवाजे के
पीछे छुप कर खड़ी हो जाऊं,
कोई आये तो जोर से "भौ "
कह के डराऊँ।
पीछे छुप कर खड़ी हो जाऊं,
कोई आये तो जोर से "भौ "
कह के डराऊँ।
जी चाहता है कि आईने में
मुँह तरह तरह के बनाऊं,
और खूब कहकहे लगाऊं।
मुँह तरह तरह के बनाऊं,
और खूब कहकहे लगाऊं।
जी चाहता है फिर पलंग
के नीचे जा छुप जाऊँ,
आवाज दे माँ रख आंखों पे हाथ,
तभी.............अचानक ,
धम्म.................से,
सामने उनके मैं आऊँ।
के नीचे जा छुप जाऊँ,
आवाज दे माँ रख आंखों पे हाथ,
तभी.............अचानक ,
धम्म.................से,
सामने उनके मैं आऊँ।
जी करता है आज फिर से
पकड़ उँगली माँ पापा की
रास्ते मे झूला झूलती जाऊँ,
उन्हें पता न चला ,
ये सोच के इतराऊँ।
पकड़ उँगली माँ पापा की
रास्ते मे झूला झूलती जाऊँ,
उन्हें पता न चला ,
ये सोच के इतराऊँ।
कोई जो पूछे परिचय,
झट पापा का और माँ
का नाम बताऊँ।
झट पापा का और माँ
का नाम बताऊँ।
न जाने कब लिया था
आखरी बार पापा
और माँ का नाम।
खो ही गई है अब
उनकी पहचान।
आखरी बार पापा
और माँ का नाम।
खो ही गई है अब
उनकी पहचान।
लगता है हम औरतों की
खुद के घर से नही रह
जाती कुछ पहचान।
खुद के घर से नही रह
जाती कुछ पहचान।
अरसा हुआ नही पुकारा
अपनी जुबान से शब्द "माँ"
बस एकबार आ जाये सामने
तो चिल्ला चिल्ला के रोऊँ
जोर से गले लग मैं जाऊँ।
अपनी जुबान से शब्द "माँ"
बस एकबार आ जाये सामने
तो चिल्ला चिल्ला के रोऊँ
जोर से गले लग मैं जाऊँ।
धुंधला गई है अब तो
शक्ल भी उनकी ,
खो गए न जाने कहाँ,
ये सोच सोच घबराऊँ।
शक्ल भी उनकी ,
खो गए न जाने कहाँ,
ये सोच सोच घबराऊँ।
रोके कहाँ रुकी है,
समय की गति ,
सोच यही, चुप हो जाऊँ।
समय की गति ,
सोच यही, चुप हो जाऊँ।
चलूँ उठूँ काम मे लगूँ,
स्वप्न तो स्वप्न ही है
खुद को ही समझाऊं।
🙏
🙏
स्वप्न तो स्वप्न ही है
खुद को ही समझाऊं।



Sunday, December 31, 2017
Monday, December 4, 2017
👌🏽
👌🏽Bahut hi sundar kavita
👌🏽
👌🏽
- *कंद-मूल खाने वालों से*
मांसाहारी डरते थे।। - ...
- *पोरस जैसे शूर-वीर को*
नमन 'सिकंदर' करते थे॥ - *चौदह वर्षों तक खूंखारी*
वन में जिसका धाम था।। - *मन-मन्दिर में बसने वाला*
शाकाहारी *राम* था।। - *चाहते तो खा सकते थे वो*
मांस पशु के ढेरो में।। - लेकिन उनको प्यार मिला
' *शबरी' के जूठे बेरो में*॥ - *चक्र सुदर्शन धारी थे*
*गोवर्धन पर भारी थे*॥ - *मुरली से वश करने वाले*
*गिरधर' शाकाहारी थे*॥ - *पर-सेवा, पर-प्रेम का परचम*
चोटी पर फहराया था।। - *निर्धन की कुटिया में जाकर*
जिसने मान बढाया था॥ - *सपने जिसने देखे थे*
मानवता के विस्तार के।। - *नानक जैसे महा-संत थे*
वाचक शाकाहार के॥ - *उठो जरा तुम पढ़ कर देखो*
गौरवमय इतिहास को।। - *आदम से आदी तक फैले*
इस नीले आकाश को॥ - *दया की आँखे खोल देख लो*
पशु के करुण क्रंदन को।। - *इंसानों का जिस्म बना है*
शाकाहारी भोजन को॥ - *अंग लाश के खा जाए*
क्या फ़िर भी वो इंसान है? - *पेट तुम्हारा मुर्दाघर है*
या कोई कब्रिस्तान है? - *आँखे कितना रोती हैं जब*
उंगली अपनी जलती है - *सोचो उस तड़पन की हद*
जब जिस्म पे आरी चलती है॥ - *बेबसता तुम पशु की देखो*
बचने के आसार नही।। - *जीते जी तन काटा जाए*,
उस पीडा का पार नही॥ - *खाने से पहले बिरयानी*,
चीख जीव की सुन लेते।। - *करुणा के वश होकर तुम भी*
गिरी गिरनार को चुन लेते॥ - *शाकाहारी बनो*...!
- ज्ञात हो इस कविता का जब TV पर प्रसारण हुआ था तब हज़ारो लोगो ने मांसाहार त्याग कर *शाकाहार* का आजीवन व्रत लिया था।
🙏
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Sunday, October 8, 2017
Sunday, October 1, 2017
http://www.picdesi.com/upload/1109/happy-dussehra-6.gif
http://www.picdesi.com/upload/1109/happy-dussehra-6.gif
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